डॉ. रजनी तिवारी: ग्रीन सेल मोबिलिटी में एक सहयोगी और इनक्लूसिव वर्कप्लेस बनाने की कहानी

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बिज़नेस की दुनिया में कामयाबी का पैमाना अक्सर मुनाफा, प्रॉडक्ट्स या मार्केट शेयर से तय किया जाता है। लेकिन क्या किसी कंपनी की असली सफलता सिर्फ पैसों से मापी जा सकती है? हकीकत में, कंपनी कोई खुद से नहीं बनती — लोग उसे बनाते हैं। वही लोग जो आइडिया लेकर आते हैं, उन्हें ज़मीन पर उतारते हैं, और कंपनी को ऊँचाइयों तक पहुंचाते हैं। किसी भी कंपनी की ग्रोथ इस बात पर टिकी होती है कि उसके एम्प्लॉईज़ को कितना समझा गया है, उन्हें कितना एम्पावर किया गया है। और यहीं पर ह्यूमन रिसोर्सेज यानी एचआर का रोल शुरू होता है।

एचआर सिर्फ सेलरी मैनेज करने या एप्प्राइज़ल फॉर्म भरवाने वाला डिपार्टमेंट नहीं है। ये वो टीम होती है जो कंपनी को, टीमों को और वहां काम करने वाले लोगों को ग्रो करने में मदद करती है। शायद इसी वजह से एचआर को हमेशा एक ऐसा फील्ड माना गया है जहाँ महिलाओं की अच्छी पकड़ रही है। लेकिन इसके बावजूद, बहुत ही कम महिलाएं ऐसी होती हैं जो टॉप लीडरशिप पोज़िशन तक पहुँच पाती हैं। डॉ. रजनी तिवारी उन्हीं कुछ खास नामों में से एक हैं।

20 साल से ज़्यादा का एक्सपीरियंस रखने वाली रजनी ने एचआर लीडरशिप को एक नया मायने दिया है। मैनेजमेंट में डॉक्टरेट की डिग्री रखने के साथ-साथ वो डेल कार्नेगी और फ्रैंकलिन कोवी की सर्टिफाइड मास्टर ट्रेनर भी हैं। उनका करियर सिर्फ सपोर्ट देने वाला नहीं रहा, उन्होंने एचआर को कंपनी की स्ट्रैटेजिक फंक्शन बना दिया है। इस समय वो ग्रीन सेल मोबिलिटी में चीफ़ पीपल ऑफिसर के तौर पर काम कर रही हैं, जहाँ वो फ्यूचर-रेडी और एजाइल टीमें बना रही हैं। लेकिन उनकी सबसे खास बात सिर्फ उनके प्रोफेशनल अचीवमेंट्स नहीं हैं, बल्कि उनका वो तरीका है जिससे वो लोगों को लीड करती हैं — पूरे पैशन और इंपैथी के साथ।

एक लीडर बनने की शुरुआत

रजनी के लिए एचआर लीडर बनने का रास्ता आसान नहीं था। एक छोटे शहर और पारंपरिक परिवार से आने वाली रजनी अपने घर की पहली लड़की थीं जिन्होंने हायर एजुकेशन ली और फिर करियर भी बनाया।

बचपन से ही उनमें दूसरों के लिए इंपैथी थी। जब उन्होंने 2002 में एमबीए किया, तो एचआर को चुनना एक नेचुरल फैसला था। उनके लिए ये सिर्फ एक जॉब नहीं थी — वो लोगों के करियर में वाकई में फर्क लाना चाहती थीं। लेकिन रास्ता आसान नहीं था। जिस बैकग्राउंड से वो आई थीं, वहाँ लड़कियों का शहर से बाहर पढ़ने या जॉब करने जाना भी आम बात नहीं थी। उन्होंने इन सीमाओं को तोड़कर अपनी राह खुद बनाई। और एक बार प्रोफेशनल दुनिया में कदम रखा, फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने एक बड़ी कंपनी में जॉइन किया और फिर कई अलग-अलग इंडस्ट्रीज़ की टॉप कंपनियों के साथ काम किया।

उनकी पूरी जर्नी में एक चीज़ हमेशा कॉमन रही — एथिकल ट्रांज़िशन यानी नैतिक बदलावों की अहमियत। उन्होंने कभी एक ही इंडस्ट्री में दो बार काम नहीं किया। “अगर मैं एक हेल्थकेयर कंपनी में काम कर रही हूँ और कह रही हूँ कि ये बेस्ट है, तो मैं दूसरी हेल्थकेयर कंपनी में जाकर फिर वही कैसे कह सकती हूँ?” — ये सोच उनके हर कदम में दिखती है। इसी सोच ने उन्हें हर नई कंपनी के लिए एक नया, फ्रेश नज़रिया दिया।

जहाँ कई प्रोफेशनल्स बिना किसी बड़ी ज़िम्मेदारी के काम करते रहते हैं, रजनी ने हमेशा ग्रोथ चाही। वो बताती हैं, “2004 में, मेरी कंपनी की एक सक्सेस पार्टी थी। वहाँ एचआर हेड एक महिला थीं — उनकी सादगी और लोगों पर उनका असर मेरे दिल को छू गया। मैंने वहीं सोच लिया था — अगर मुझे कभी मौका मिला, तो मैं सिर्फ उनके जैसी नहीं, उनसे भी बेहतर बनूँगी। ये कोई एम्बिशन नहीं था, ये भरोसा था कि सही एचआर लीडर एक कंपनी को सच में बदल सकता है।”

एक जॉइंट फैमिली से आने की वजह से उन्होंने हमेशा समझा कि पावर के साथ रिस्पॉन्सिबिलिटी भी आती है। लीडरशिप उनके लिए कभी पोज़िशन या ऑथॉरिटी नहीं रही — ये हमेशा ओनरशिप, सही फैसले लेने और पॉज़िटिव चेंज लाने की बात रही है। यही विज़न और डेडिकेशन आज उन्हें उस मुकाम पर लाया है।

उनकी लीडरशिप जर्नी 2008 में आकार लेने लगी, और आज वो ग्रीन सेल मोबिलिटी में चीफ़ पीपल ऑफिसर हैं — एक ऐसी स्टार्टअप जो सस्टेनेबल मोबिलिटी के फील्ड में काम कर रही है। “स्टार्टअप में हर दिन कुछ नया होता है, लेकिन यही इस सफर को मज़ेदार बनाता है,” वो कहती हैं।

न डरी, न झुकी, न रुकी

बिज़नेस वर्ल्ड में एक औरत के लिए रास्ता हमेशा सीधा नहीं होता। कई बार खुद को साबित करना पड़ता है, और बोर्डरूम में जहाँ अब भी उनकी जगह को लेकर सवाल होते हैं, अपनी आवाज़ बनानी पड़ती है। रजनी ने ये सब फर्स्टहैंड झेला है, लेकिन कभी खुद को कमजोर नहीं पड़ने दिया।

“कई बार ऐसा होता है कि आप मीटिंग में बैठे हो और अपनी बात कहने के लिए जूझ रहे हो। लेकिन चुप नहीं रह सकते, सिर्फ दूसरों की गूंज नहीं बन सकते,” वो कहती हैं। करियर की शुरुआत में ऐसे कई मौके आए जब किसी पुरुष सहकर्मी की बात चुभ गई। “एक बार कुछ ऐसा कहा गया जो मुझे बहुत बुरा लगा। मैं अपने केबिन गई, मुँह धोया, लंबी साँस ली और मुस्कुराकर बाहर आई। क्योंकि जिस पल आप टूटे हुए दिखते हैं, उसी पल आप अपनी पोज़िशन खो देते हो।”

उनका मानना है कि एक औरत के तौर पर हमारी सहने की ताकत हमेशा ज़्यादा होती है। “लोग इसे ज़िद कह सकते हैं, लेकिन सच ये है कि हम औरतें थोड़ी सतर्क होती हैं — और ये बिल्कुल ठीक है।”

उनके लिए सबसे ज़रूरी चीज़ है सेल्फ-बिलीफ — खुद पर भरोसा। “जब आप अपना असली पोटेंशियल समझ लेते हो, तो आपको बाहर से कोई मान्यता नहीं चाहिए। आप मेहनत करते हैं, तैयारी करते हैं, और अपनी जगह खुद बना लेते हैं।” उनका मानना है कि हर औरत के पास एक चॉइस होती है — या तो वो विक्टिम बने या अपनी कहानी की हीरो। और उन्होंने हमेशा दूसरा रास्ता चुना है। “मैं एक शी-हीरो हूँ,” वो मुस्कुराकर कहती हैं। यही माइंडसेट उन्हें भीड़ से अलग बनाता है। क्योंकि लीडरशिप का मतलब फिट इन होना नहीं है, बल्कि अपने तरीके से, मजबूती से, बिना माफी मांगे खड़े रहना है।

ग्रीन सेल मोबिलिटी: एक लोगों को सबसे ऊपर रखने वाली कंपनी

ग्रीन सेल मोबिलिटी एक ऐसी ऑर्गनाइज़ेशन है जो अपने लोगों के लिए और अपने लोगों के द्वारा बनी है। “हम एक बहुत ही डेमोक्रेटिक ऑर्गनाइज़ेशन हैं,” रजनी बताती हैं। “यहाँ हर एम्प्लॉई, चाहे उसका पद कुछ भी हो, उसकी आवाज़ की कद्र की जाती है और उसे बराबर का सम्मान, भरोसा और एम्पावरमेंट दिया जाता है।”

ग्रीन सेल मोबिलिटी की एक बड़ी वैल्यू है – एजिलिटी। इलेक्ट्रिक मोबिलिटी सेक्टर में फर्स्ट मूवर होने के कारण कंपनी को कई नई और अनजान चुनौतियों का सामना करना पड़ा। “हम मिस्टेक्स से डरते नहीं हैं,” रजनी समझाती हैं। “हम तो मिस्टेक्स को सेलिब्रेट करते हैं, क्योंकि हर गलती हमें कुछ सिखाती है और आगे बढ़ने में मदद करती है। हाँ, हम यह जरूर सुनिश्चित करते हैं कि मिस्टेक्स पैटर्न ना बनें, लेकिन हम ट्रायल एंड एरर से सीखने वाले लोगों को पनिश नहीं करते।”

इसी माइंडसेट की वजह से ग्रीन सेल मोबिलिटी ने इंडस्ट्री में कई फर्स्ट्स अचीव किए हैं — चेन्नई में पहली ईवी बस रजिस्टर कराई और पहला ग्रीन लोन भी हासिल किया। लेकिन इन सभी माइलस्टोन्स से भी बढ़कर, जो चीज़ कंपनी को सबसे अलग बनाती है, वह है इसका पीपल-सेंट्रिक अप्रोच। “हम एक ऐसी ऑर्गनाइज़ेशन हैं जो अपने लोगों पर पूरा भरोसा करती है,” रजनी ज़ोर देती हैं। “हमारी लीडरशिप टीम, हमारे एचओडीज़, यहाँ तक कि जूनियर स्टाफ – सब जानते हैं कि यहाँ फेयरनेस और एथिक्स से कोई समझौता नहीं होता।”

एक फेयर और पीपल-सेंट्रिक ऑर्गनाइज़ेशन होने का सबसे बड़ा रिवॉर्ड ग्रीन सेल मोबिलिटी को एम्प्लॉई रिटेंशन के रूप में मिला है। जहाँ स्टार्टअप्स में दो-तीन साल के अंदर हाई अट्रिशन रेट आम बात है, वहीं ग्रीन सेल इस ट्रेंड से अलग है। “पिछले लगभग पाँच सालों में हमारे यहाँ अट्रिशन ना के बराबर रहा है,” रजनी गर्व से बताती हैं। “और इसका कारण पैसा नहीं है। लोग यहाँ इसलिए टिके हैं क्योंकि उन्हें जैसा ट्रीट किया जाता है, वो बाकी जगह नहीं मिलता।”

डायवर्सिटी, इक्विटी और इन्क्लूज़न

“मैं डायवर्सिटी, इक्विटी और इन्क्लूज़न पर उस समय से काम कर रही हूँ जब ये एचआर प्रोफेशनल्स के लिए कोई ऑफिशियल के.आर.ए. भी नहीं था,” रजनी कहती हैं। ग्रीन सेल मोबिलिटी में डायवर्सिटी कंपनी के डीएनए का हिस्सा है। ऑर्गनाइज़ेशन यह मानता है कि स्किल, बैकग्राउंड, जियोग्रफी और अपॉर्च्युनिटी — इन सबमें डायवर्सिटी होनी चाहिए। यहाँ हर किसी को, चाहे उसका जेंडर या बैकग्राउंड कुछ भी हो, पे, रिस्पॉन्सिबिलिटीज़ और करियर ग्रोथ के मामले में फेयर ट्रीटमेंट दिया जाता है।

मोबिलिटी इंडस्ट्री को हमेशा मेल-डॉमिनेटेड माना गया है, लेकिन ग्रीन सेल इस सोच को तोड़ रहा है। आज कंपनी की वर्कफोर्स में 10% वुमन और अदर जेंडर्स शामिल हैं — जो इस सेक्टर में एक नया रिकॉर्ड है। लेकिन कंपनी के लिए डायवर्सिटी सिर्फ एक टारगेट पूरा करने के लिए नहीं है। “हम सिर्फ नंबर बढ़ाने के लिए डायवर्सिटी नहीं करते,” रजनी समझाती हैं। “हम यह पक्का करते हैं कि हर जेंडर के एम्प्लॉइज़ को कस्टमर-फेसिंग और मीनिंगफुल रोल्स मिलें, ना कि सिर्फ बैक-ऑफिस जॉब्स।”

कंपनी अलग-अलग शहरों और यहाँ तक कि टियर-2 रीजन से भी लोगों को हायर करती है — वहाँ से जहाँ सच में ग्रोथ की भूख है। “इससे ना सिर्फ हमारी टीम स्ट्रॉन्ग होती है, बल्कि हम देश के डेवलपमेंट में भी अपना कंट्रीब्यूशन दे रहे हैं,” वो जोड़ती हैं।

असली इन्क्लूज़न तब होता है जब एम्प्लॉइज़ की स्पेशल ज़रूरतों को समझा जाए। जब ग्रीन सेल ने पहली बार फीमेल कोच कैप्टन्स (बस ड्राइवर्स) हायर कीं, तो उन्हें पता चला कि सख्त शेड्यूलिंग हर किसी के लिए वर्क नहीं करती। “कुछ महिलाओं को फैमिली कमिटमेंट्स की वजह से शिफ्ट फ्लेक्सिबिलिटी चाहिए थी, और हमने उन्हें वो दिया,” रजनी बताती हैं।

कंपनी जेंडर ट्रांजिशन से गुजर रहे एम्प्लॉइज़ को भी पूरा सपोर्ट देती है — चाहे वो टाइम-ऑफ हो या ज़रूरी रिसोर्सेज़।

हायरिंग से आगे बढ़कर, ग्रीन सेल ये भी पक्का करती है कि सेफ्टी और इन्क्लूज़न सबसे ऊपर रहे। कंपनी POSH (प्रिवेन्शन ऑफ सेक्सुअल हैरेसमेंट) को सिर्फ कंप्लायंस के लिए नहीं, बल्कि एक सेफ और ओपन वर्कस्पेस बनाने के मकसद से एक्टिवली डिस्कस करती है। “ग्रीन सेल में सेफ्टी हमेशा रेवेन्यू से पहले आती है — चाहे वो रोड सेफ्टी हो, एम्प्लॉइज़ की वेलबीइंग हो या वर्कप्लेस सिक्योरिटी,” रजनी कहती हैं।

LGBTQ+ एम्प्लॉइज़ को ऑनबोर्ड करते समय कंपनी अवेयरनेस सेशन्स कराती है ताकि एक वेलकमिंग कल्चर बन सके। “मैं ये उम्मीद नहीं करती कि लोगों की पर्सनल सोच एक दिन में बदल जाएगी, लेकिन प्रोफेशनली हर किसी को एक रिस्पेक्टफुल और सपोर्टिव एनवायरनमेंट देना ही होगा,” रजनी साफ़ कहती हैं।

एक DEI चैंपियन लीडर के तौर पर रजनी मानती हैं कि चुनौतियाँ तो आती हैं, लेकिन उनका कमिटमेंट कभी कम नहीं होता। “कई बार मुझे रिज़िस्टेंस झेलना पड़ता है, लेकिन जब मैं देखती हूँ कि हमारे एम्प्लॉइज़ सेफ महसूस करते हैं, रिस्पेक्टेड हैं और उनके करियर में ग्रोथ हो रही है — तो लगता है सब कुछ वर्थ इट है।”

कल के लीडर्स तैयार करना

जैसे-जैसे वर्क मॉडल्स बदलते जा रहे हैं, ग्रीन सेल मोबिलिटी भी उसी के साथ एवाल्व कर रहा है। आज कंपनी के एम्प्लॉयीज़ पूरे इंडिया में अलग-अलग जगहों से काम कर रहे हैं, और यहाँ तक कि क्रिटिकल लीडरशिप रोल्स भी सिर्फ कॉरपोरेट ऑफिस तक लिमिटेड नहीं हैं। “हमारे लिए सिंपल है — आप डिलीवर कर रहे हो, तो आप कहाँ से कर रहे हो वो मैटर नहीं करता,” रजनी कहती हैं।

हालाँकि, एक ऐसा स्टार्टअप जो क्रॉस-फंक्शनल कोऑर्डिनेशन पर चलता है, वहाँ सक्सेस की की है — कॉन्स्टन्ट कम्यूनिकेशन। “हम लोग लगातार बात करते हैं, ज़रूरत से ज़्यादा कम्यूनिकेट करते हैं और पूरी ट्रांसपरेंसी रखते हैं,” वो जोड़ती हैं।

चाहे ऑनलाइन सेशन हो या ऑफलाइन, कंपनी ये इंश्योर करती है कि रिमोट एम्प्लॉयीज़ खुद को डिसकनेक्टेड न महसूस करें। “अगर चीज़ें अच्छी चल रही हैं तो हम वो बताते हैं, और अगर कुछ ठीक नहीं चल रहा तो वो भी बताते हैं। हाँ, हम ये ध्यान रखते हैं कि लोग क्या एब्ज़ॉर्ब कर सकते हैं, लेकिन ये ट्रांसपरेंसी ही है जिसकी वजह से एम्प्लॉयीज़ हम पर ट्रस्ट करते हैं। और ये ट्रस्ट हमने पिछले पाँच सालों में कमाया है,” रजनी बताती हैं।

जहाँ तक लर्निंग और डिवेलपमेंट की बात है, ग्रीन सेल का अप्रोच पूरी तरह पर्सनलाइज़्ड है। “हमारे पास टॉप इंस्टिट्यूट्स से पढ़े लोग भी हैं और नॉन-ट्रेडिशनल बैकग्राउंड से आए लोग भी। इसलिए वन-साइज़-फिट्स-ऑल लर्निंग हमारे यहाँ काम नहीं करती। हम हर एम्प्लॉयी के लिए स्पेशलाइज़्ड लर्निंग पाथ्स बनाते हैं,” रजनी समझाती हैं।

इलेक्ट्रिक मोबिलिटी में एक्सपर्टीज़ की ज़रूरत को समय रहते पहचानते हुए, कंपनी ने आई.आई.टीज़ के साथ मिलकर ई.वी. टेक्नोलॉजी पर अकैडमिक कोर्सेज़ डेवेलप किए — वो भी उस समय जब मार्केट में इसकी डिमांड शुरू भी नहीं हुई थी।

कंपनी हर लेवल पर एम्प्लॉयीज़ को अपस्किल करने के लिए कमिटेड है। “हम लर्निंग में इनवेस्ट करने से कभी पीछे नहीं हटते। हमने तो अपने सबसे जूनियर एम्प्लॉयीज़ को भी चाइना भेजा है ताकि वो हैंड्स-ऑन एक्सपीरियंस ले सकें,” वो कहती हैं।

जैसे कुछ कंपनियाँ ये सोचती हैं कि ट्रेनिंग देने के बाद एम्प्लॉयी कहीं और चले जाएँगे, वैसे में ग्रीन सेल इसे एक इनवेस्टमेंट की तरह देखता है। “मेरे एक पुराने एम्प्लॉयर ने कहा था — ‘जो भी अच्छा सिखाओगे, वो आपकी ऑर्गनाइज़ेशन के लिए गुडविल बनाएगा।’ और मैं इस बात को पूरी तरह मानती हूँ,” रजनी बताती हैं।

लीडरशिप डिवेलपमेंट प्रोग्राम्स (एल.डी.पी.) से लेकर मैनेजमेंट डिवेलपमेंट प्रोग्राम्स (एम.डी.पी.) तक — हर चीज़ कंपनी की ज़रूरतों के हिसाब से कस्टमाइज़ की जाती है। “हम कभी भी ऑफ-शेल्फ कोर्सेज़ नहीं उठाते। हम सही एक्सपर्ट्स लाते हैं और सब कुछ अपनी टीम के लिए टेलर करते हैं। हर साल हम ये पक्का करते हैं कि हर एम्प्लॉयी को स्किल-बेस्ड और प्रोफेशनल डिवेलपमेंट ट्रेनिंग दोनों मिले,” वो बताती हैं।

एक ऐसा वर्कप्लेस जो वाकई परवाह करता है

ग्रीन सेल मोबिलिटी में एम्प्लॉयीज़ की भलाई सबसे ऊपर है। खुद रजनी एक माइण्डसेट और वेल-बीइंग कोच भी हैं और उन्होंने वेल-बीइंग के तीन अहम हिस्सों पर काम किया है — फिज़िकल वेल-बीइंग, मेंटल वेल-बीइंग और फाइनेंशियल वेल-बीइंग। कंपनी ये पक्का करती है कि ये देखभाल सिर्फ ऑन-रोल एम्प्लॉयीज़ तक सीमित न रहे, बल्कि आउटसोर्स्ड वर्कर्स तक भी पहुँचे। “हमारे लिए कोई फ़र्क नहीं है — चाहे कॉरपोरेट एम्प्लॉयी हो या हमारी सबसे कीमती असेट, बस चलाने वाला कोच कैप्टन — हर किसी की भलाई मायने रखती है।”

फाइनेंशियल वेल-बीइंग को सपोर्ट करने के लिए, ग्रीन सेल अपने एम्प्लॉयीज़ को पैसे को सही ढंग से मैनेज करना सिखाता है। फिज़िकल हेल्थ के लिए कंपनी टॉप-क्लास हेल्थकेयर प्रोग्राम्स और मेडिक्लेम कवरेज देती है, जो एम्प्लॉयी और उनके डिपेंडेंट्स दोनों को कवर करता है।

मेंटल वेल-बीइंग पर कंपनी का खास फोकस है और ग्रीन सेल का एप्रोच इसमें बिल्कुल अलग है। “मैं खुद हर महीने सेशन लेती हूँ जिससे एम्प्लॉयीज़ अपने स्ट्रेस को बेहतर तरीके से हैंडल कर सकें — चाहे वो पीयर प्रेशर हो, फैमिली की टेंशन हो या स्टार्टअप में काम करने की चैलेंजेस,” रजनी बताती हैं। इन सेशन्स को लेकर रिस्पॉन्स जबरदस्त रहा है। “हमारी लेटेस्ट वेल-बीइंग सीरीज़ में करीब 98% पार्टिसिपेशन वॉलंटरी था, जो इसके असर को साफ दिखाता है।”

कोविड-19 पैंडेमिक के दौरान कंपनी की यह कमिटमेंट साफ नज़र आई। ग्रीन सेल ने डिलीवरी पार्टनर्स के साथ मिलकर वेल-बीइंग किट्स उन एम्प्लॉयीज़ और उनके परिवारों को भेजी जो प्रभावित हुए थे। हर किट के साथ एक पर्सनलाइज्ड मोटिवेशनल नोट भेजा गया, ताकि उन्हें लगे कि वो अकेले नहीं हैं।

आज भी कंपनी सिर्फ पारंपरिक बेनिफिट्स तक सीमित नहीं है। अगर कोई एम्प्लॉयी या उनके डिपेंडेंट को कोई क्रिटिकल बीमारी होती है, तो कंपनी काउंसलिंग और पूरा सपोर्ट देती है। “जब किसी एम्प्लॉयी को ये महसूस होता है कि उसका वर्कप्लेस उसके घर जैसा है — वहीं सबसे बड़ा फर्क पड़ता है,” रजनी कहती हैं।

आगे का रास्ता

“हमारे सामने एक बहुत ही ‘क्रेज़ी’ साल है — ग्रोथ के लिहाज़ से,” रजनी बताती हैं। कंपनी एक बड़े एक्सपेंशन की तैयारी कर रही है — न कि सिर्फ डबल या ट्रिपल, बल्कि उस लेवल पर जो इंडस्ट्री में उसकी पहचान को पूरी तरह बदल देगा। कई ओ.ई.एम. पार्टनरशिप्स के साथ, ग्रीन सेल नई लर्निंग्स के लिए तैयार है।

लेकिन इस ग्रोथ के बीच भी कंपनी का फोकस लोगों पर आधारित पॉलिसीज़, फेयर ऑपर्च्युनिटीज़ और एक इन्क्लूसिव कल्चर पर बना हुआ है। “ग्रीन सेल में हम इंडिया की मोबिलिटी इंडस्ट्री को ट्रांसफॉर्म करने में विश्वास रखते हैं — पैसेंजर्स और गेस्ट्स को एक डिलाइटफुल सर्विस देना हमारा मकसद है,” रजनी कहती हैं।

लीडरशिप मंत्रा

एच.आर. का एक संगठन के शेप होने में बहुत बड़ा रोल होता है, और इसके लिए उन्हें मार्केट ट्रेंड्स के साथ अपडेटेड रहना बहुत ज़रूरी है — खासकर डिजिटल स्पेस में। “आप मानें या न मानें, लेकिन आपको डिजिटल से अलाइन्ड रहना ही होगा,” रजनी कहती हैं।

एम्पैथी और कंपैशन एच.आर. की कोर वैल्यूज़ हैं, और इसके साथ ट्रस्ट सबसे अहम है। “ट्रस्ट जैसा कुछ आधा या थोड़ा नहीं होता — या तो ट्रस्ट होता है या नहीं होता। अगर आप अपने लोगों पर भरोसा नहीं कर सकते, तो फिर साथ काम कैसे करेंगे?” वो कहती हैं।

वो रिस्पेक्ट को भी बहुत ज़रूरी मानती हैं — “अगर आप सामने वाले को रिस्पेक्ट देंगे, तो 80% प्रॉब्लम्स अपने आप सॉल्व हो जाएँगी।”

जो यंग वुमेन एच.आर. में करियर बनाना चाहती हैं, उनके लिए रजनी का खास मैसेज है — “आपके अंदर एम्पैथी, सब्जेक्ट नॉलेज और एजिलिटी होनी चाहिए। आपका नॉलेज ही ये साबित करेगा कि एच.आर. कोई बैक-एंड फंक्शन नहीं है। आजकल लोग बहुत जल्दी पढ़ना बंद कर देते हैं, लेकिन कंटीन्युअस लर्निंग और अडैप्टबिलिटी बहुत ज़रूरी है। आपको एजाइल रहना ही होगा, वरना आप कब आउटडेटेड हो जाएँगे, पता भी नहीं चलेगा।”

वो ये भी कहती हैं कि किसी को भी अनलर्न और रिलर्न करने के लिए तैयार रहना चाहिए। “अगर आप ये सोच कर चलते हैं कि ‘मैं यहाँ से आया हूँ, और मुझे सब कुछ आता है’ — तो सच ये है कि आपको कुछ नहीं आता।”

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