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दिलीप शांघवी: फार्मास्युटिकल क्षेत्र के पायनियर

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दिलीप शांघवी, 1 अक्टूबर 1955 को जन्मे, भारत के बिजनेस परिदृश्य में एक अत्यधिक सम्मानित नाम हैं। वह न केवल देश के सबसे अमीर व्यक्तियों में से एक हैं, बल्कि एक दूरदर्शी उद्यमी भी हैं जिन्होंने फार्मास्युटिकल उद्योग में क्रांति ला दी। उनकी यात्रा, जो एक छोटे से शहर गुजरात से शुरू होकर सन फार्मास्युटिकल्स के संस्थापक बनने तक पहुंची, उनकी मेहनत और व्यापारिक समझ का प्रमाण है।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

दिलीप शांघवी एक गुजराती जैन परिवार से आते हैं, जिनकी जड़ें कोलकाता में हैं। उनका जन्म गुजरात के छोटे से शहर अमरेली में हुआ था, जहां वह शांति लाल शांघवी और कुमुद शांघवी के घर पैदा हुए।

शांघवी की शैक्षिक यात्रा कोलकाता विश्वविद्यालय से वाणिज्य में स्नातक की डिग्री प्राप्त करने से शुरू हुई। उनके प्रारंभिक वर्ष कोलकाता के बड़ाबाजार में बीते, जहां उन्होंने जे.जे. अजमेरा हाई स्कूल और बाद में भवानीपुर एजुकेशन सोसाइटी कॉलेज से अपनी पढ़ाई की।

सन फार्मास्युटिकल्स की शुरुआत

दिलीप शांघवी का करियर कोलकाता में अपने पिता के थोक दवाइयों के व्यापार में सहायता करने से शुरू हुआ। यह व्यवसाय मुख्य रूप से सामान्य दवाओं से संबंधित था। हालांकि, यहीं पर शांघवी के मन में यह विचार आया कि क्यों न वह अपनी दवाइयाँ खुद तैयार करें, दूसरों की दवाइयों पर निर्भर रहने के बजाय।

1982 में, 27 वर्ष की आयु में, शांघवी ने 10,000 रुपये की शुरुआती पूंजी से अपनी पहली निर्माण इकाई स्थापित की। उन्होंने इस व्यवसाय का नाम “सन फार्मास्युटिकल इंडस्ट्रीज” रखा। यह इकाई गुजरात के वापी में स्थित थी, जो मुंबई से दूर नहीं था, और शुरू में यहां एक मानसिक रोगों की दवाई बनती थी। लेकिन शांघवी की मार्गदर्शन में यह व्यवसाय तेजी से आगे बढ़ा।

सन फार्मा का विस्तार

1997 तक, सन फार्मा ने जबरदस्त वृद्धि की और अमेरिकी कंपनी “कैरेको फार्मा” का अधिग्रहण कर लिया। 2007 में, सन फार्मा ने इज़राइल की “टारो फार्मा” को भी अपने अधीन किया, जिससे इसकी वैश्विक उपस्थिति और भी मजबूत हुई।

नेतृत्व का एक नया अध्याय

शांघवी का नेतृत्व और व्यापारिक समझ ने सन फार्मा को अभूतपूर्व ऊंचाइयों तक पहुंचाया। 2012 में, उन्होंने चेयरमैन और सीईओ के पद से इस्तीफा दे दिया और इस जिम्मेदारी को इजराइल मेकोव को सौंपा, जो पूर्व में टेवा फार्मास्युटिकल्स के सीईओ थे। शांघवी ने इसके बाद प्रबंध निदेशक का पद संभाला।

2015 में, सन फार्मा ने रणबैकसी फार्मास्युटिकल्स का अधिग्रहण किया, जो $3.2 बिलियन के मूल्य का था। इस अधिग्रहण के साथ ही सन फार्मा न केवल भारत का सबसे बड़ा दवा निर्माता बन गया, बल्कि यह वैश्विक स्तर पर पांचवां सबसे बड़ा दवा निर्माता भी बन गया।

समाज और शिक्षा के प्रति प्रतिबद्धता

दिलीप शांघवी का योगदान केवल व्यापार जगत तक सीमित नहीं है। 2018 में, भारतीय सरकार ने उन्हें भारतीय रिजर्व बैंक के 21 सदस्यीय केंद्रीय बोर्ड समिति में नियुक्त किया। इसके अलावा, वह आईआईटी बॉम्बे के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के अध्यक्ष भी हैं।

2017 में, शांघवी को ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित रोड्स स्कॉलरशिप कार्यक्रम में ट्रस्टी की भूमिका दी गई।

व्यक्तिगत जीवन और परिवार

दिलीप शांघवी की पत्नी, विधा शांघवी, भी कई कंपनियों के साथ सक्रिय रूप से जुड़ी हुई हैं, जिनमें सन पेट्रोकेमिकल्स प्राइवेट लिमिटेड और गुजरात सन फार्मास्युटिकल्स प्राइवेट लिमिटेड शामिल हैं। उनके दो बच्चे हैं, आलोक और विधि, जो दोनों सन फार्मास्युटिकल्स से जुड़े हुए हैं।

आलोक दिलीप शांघवी वर्तमान में सन फार्मास्युटिकल इंडस्ट्रीज लिमिटेड में निदेशक, EVP और बिजनेस डेवलपमेंट के प्रमुख हैं। विधि शांघवी भी तीन कंपनियों में सक्रिय रूप से काम कर रही हैं, जिनमें सन पेट्रोकेमिकल्स प्राइवेट लिमिटेड, विवल्डिस हेल्थ एंड फूड्स प्राइवेट लिमिटेड और इति फिनवेस्ट लिमिटेड शामिल हैं।

“द रिलकंट बिलियनेयर” – एक जीवित इतिहास

2019 में, पत्रकार सोमा दास ने “द रिलकंट बिलियनेयर” नामक पुस्तक लिखी, जो दिलीप शांघवी की जीवनी पर आधारित है। यह पुस्तक पेंगुइन रैंडम हाउस द्वारा प्रकाशित की गई थी और इसे नवंबर 2019 में टाटा साहित्य पुरस्कार के तहत “बेस्ट बिजनेस बुक” श्रेणी में नामांकित किया गया था।

निष्कर्ष

दिलीप शांघवी की यात्रा एक साधारण पृष्ठभूमि से लेकर एक अरबपति उद्योगपति बनने तक की प्रेरणादायक कहानी है। उनका विजन, दृढ़ नायकत्व और उद्यमिता की शक्ति ने उन्हें न केवल भारत, बल्कि दुनिया भर में प्रेरणा देने वाली शख्सियत बना दिया है। उनकी विरासत आज भी भारत और विदेशों में आगामी उद्यमियों और नवप्रवर्तकों को प्रेरित करती है।

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