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जानकी अम्मल: विज्ञान में जड़ें, संघर्ष से सींचा जीवन

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कल्पना कीजिए, आप उस दौर में हैं जब साइंस और रिसर्च की दुनिया सिर्फ पुरुषों के लिए मानी जाती थी। और अब सोचिए कि आप न सिर्फ वहां मौजूद हैं, बल्कि बदलाव की अगुआई कर रही हैं, नई खोजें कर रही हैं, और भारतीय बॉटनी की दिशा ही बदल रही हैं। यही थीं जानकी अम्मल। अगर आपने अब तक उनका नाम नहीं सुना है, तो अब सुनने का समय है।

4 नवम्बर 1897 को केरल के थालास्सेरी में जन्मीं जानकी अम्मल ने उस समय की सामाजिक सीमाओं को चुनौती दी। जहां उनकी बहनों की शादी समय पर तय हो गई थी, वहीं जानकी ने शादी के बजाय नॉलेज और एजुकेशन को चुना। यह सिर्फ अलग रास्ता नहीं था, यह साहसिक फैसला था।

भारत से मिशिगन और फिर पूरी दुनिया तक

जानकी अम्मल ने मद्रास के क्वीन मैरी कॉलेज और प्रेसिडेंसी कॉलेज से बॉटनी में ऑनर्स किया। इसके बाद उन्हें बार्बर स्कॉलरशिप मिली और वह यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन चली गईं। 1926 में उन्होंने बॉटनी में मास्टर्स पूरा किया। भारत लौटकर कुछ समय विमेंस क्रिश्चियन कॉलेज में पढ़ाने के बाद वह फिर मिशिगन लौटीं और 1931 में साइटोजेनेटिक्स में पीएचडी पूरी की।

गन्ना और बैंगन में इनोवेशन की जननी

जानकी अम्मल का साइंटिफिक वर्क सिर्फ थ्योरी तक सीमित नहीं था, उसका असर फील्ड तक पहुँचा। कोयंबटूर के शुगरकेन ब्रीडिंग इंस्टिट्यूट में उन्होंने भारतीय गन्ने की किस्मों को बेहतर बनाने के लिए क्रॉस-ब्रीडिंग और सेल्स पर काम किया। उस समय भारत की चीनी इंडस्ट्री आयातित किस्मों पर निर्भर थी, लेकिन जानकी की रिसर्च ने देसी गन्ने को हाई यील्डिंग और भारतीय मौसम के अनुकूल बना दिया।

उन्होंने बैंगन (ब्रिंजल) की नई हाइब्रिड वैरायटीज़ भी विकसित कीं। अगर आप कभी गन्ने का रस या बैंगन की स्वादिष्ट सब्जी का मजा लेते हैं, तो उसमें कहीं न कहीं जानकी अम्मल की मेहनत की छाप जरूर होती है।

सिस्टम से संघर्ष, लेकिन विज्ञान से नाता कभी नहीं टूटा

जानकी को जातिगत पहचान और एक अकेली महिला होने के कारण प्रोफेशनल लाइफ में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। लेकिन उन्होंने न हार मानी, न समझौता किया। जब भारत में मौके सीमित लगे, तो उन्होंने लंदन का रुख किया और रॉयल हॉर्टिकल्चरल सोसाइटी के विस्ली गार्डन में पहली महिला साइंटिस्ट बनीं।

वहां उन्होंने कोल्चिसीन के प्रभाव से पौधों की हाइब्रिडाइजेशन पर एक्सपेरिमेंट किए और ‘मैग्नोलिया कोबस जानकी अम्मल’ नामक पौधा विकसित किया, जो आज भी इंग्लैंड के गार्डन में खिला हुआ है।

वनस्पति विज्ञान में दिशा देने वाली एक दूरदर्शी वैज्ञानिक

जानकी अम्मल सिर्फ प्लांट ब्रीडिंग तक सीमित नहीं रहीं। उन्होंने हिमालयी वनस्पतियों, प्लांट इवोल्यूशन और पोलिप्लॉइडी पर स्टडी की। उन्होंने पाया कि पूर्वोत्तर हिमालय क्षेत्र में ज्यादा प्लांट वैरायटीज़ क्यों पनपती हैं। 1945 में सी. डी. डार्लिंगटन के साथ मिलकर उन्होंने क्रोमोसोम एटलस ऑफ कल्टीवेटेड प्लांट्स प्रकाशित की, जो आज भी एक रेफरेंस वर्क मानी जाती है।

प्रकृति की रक्षक: साइलेंट वैली की आवाज़

जानकी अम्मल एक एक्टिविस्ट भी थीं। उन्होंने केरल की साइलेंट वैली फॉरेस्ट को एक हाइड्रो-इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट से बचाने में अहम भूमिका निभाई। उनकी कोशिशों से यह क्षेत्र एक नेशनल पार्क बना, हालांकि वो इसका उद्घाटन नहीं देख सकीं, क्योंकि उनकी मृत्यु 1984 में कुछ महीने पहले हो गई थी।

सम्मान और प्रेरणा जो आज भी जिंदा है

जानकी अम्मल को 1977 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन ने उन्हें ऑनरेरी डॉक्टरेट दी। उनके नाम पर आज स्कॉलरशिप्स, बॉटैनिकल गार्डन, हर्बेरियम और कई प्लांट्स और स्पीशीज़ जैसे ड्राविडोजेको जानकिये और सोनरिला जानकियाना का नाम रखा गया है।

आज भी ज़रूरी क्यों है जानकी अम्मल को जानना

अगर आप साइंस में रुचि रखने वाली एक युवा लड़की हैं, या किसी को ऐसा बनते देखना चाहते हैं, तो जानकी अम्मल एक आदर्श हैं। उन्होंने सिर्फ बंद दरवाज़े नहीं खोले, बल्कि वहां हरियाली भी उगा दी। अगली बार जब आप किसी मैग्नोलिया के फूल को देखें या किसी खेत में लहलहाती फसल को, तो याद कीजिए उस महिला को जिसने यह सब मुमकिन बनाया। उनका नाम था जानकी अम्मल। और वह भारतीय विज्ञान की नींव में हमेशा रहेंगी।

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