फर्टिलिटी लॉ केयर की फाउंडर, जिन्होंने रिप्रोडक्टिव राइट्स को लेकर इंडिया की लीगल सोच को बदलने की शुरुआत की
लड़कियों को हर प्रोफेशन में अपनी पहचान बनाने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है, लेकिन कुछ फील्ड जैसे लॉ, जहां हमेशा से मेल डॉमिनेशन रहा है, वहाँ स्ट्रगल और भी ज़्यादा होता है। जस्टिस का मतलब भले ही सबको बराबरी से ट्रीट करना हो, लेकिन इस दुनिया में औरतों से हमेशा ज़्यादा प्रूफ माँगा गया है। लॉ की पढ़ाई से लेकर लॉयर बनने, अपनी रेपुटेशन बनाने और फिर इस फील्ड में लीड करने तक का सफर किसी भी औरत के लिए आसान नहीं होता।
लेकिन इन सारी चुनौतियों के बीच कुछ महिलाएं ऐसी भी हैं जिन्होंने हर मुश्किल को पार कर के दूसरों के लिए रास्ता बनाया। एडवोकेट राधिका थापर बहल उन्हीं में से एक हैं। उन्होंने हर चैलेंज को एक मौका बनाया और आज वो सिर्फ एक लॉयर नहीं बल्कि एक लीडर, फाउंडर और इंस्पिरेशन हैं, जिनको देखकर लड़कियाँ बड़ा सपना देख सकती हैं।
फर्टिलिटी लॉ केयर (एफ.एल.सी.) – भरोसेमंद लीगल पार्टनर
साल 2012 में शुरू हुई फर्टिलिटी लॉ केयर (एफ.एल.सी.) गुरुग्राम, हरियाणा में बेस्ड एक फुल-फ्लेज्ड लीगल कंसल्टिंग ऑर्गनाइज़ेशन है। यह इंडिया की लीडिंग रिप्रोडक्टिव लॉ ऑर्गनाइजेशन में से एक है, जो क्लाइंट्स को लीगल, फाइनेंशियल और कॉर्पोरेट कंसल्टिंग सर्विसेज देती है। यह फर्म अपनी लोकल नॉलेज, प्रैक्टिकल सलाह, और एक्सीलेंस, इंटेग्रिटी और कन्फिडेंशियलिटी के लिए जानी जाती है।
यह फर्म क्लाइंट्स से ट्रस्ट बनाने में यकीन रखती है। हर केस को एक मैनेजर असाइन किया जाता है जिससे सर्विस की क्वालिटी बनी रहे और क्लाइंट पूरी तरह सैटिस्फाइड हो। एक्सपीरियंस्ड और स्किल्ड प्रोफेशनल्स के साथ एफ.एल.सी. सभी मेडिको-लीगल मामलों में समय पर और रिस्पॉन्सिव सपोर्ट देती है।
फर्टिलिटी लॉ केयर ए.आर.टी., सरोगेसी, एम.टी.पी., पी.सी.पी.एन.डी.टी. और बाकी सभी एथिकल रेग्युलेशंस से जुड़े मामलों में लीगल सॉल्यूशन देती है। ये फर्म लिटिगेशन, ड्राफ्टिंग, कम्प्लायंस, और ऑर्गनाइज़ेशनल पॉलिसीज जैसे पी.ओ.एस.एच. और एस.ओ.पी.स में भी हेल्प करती है।
एफ.एल.सी. की फाउंडेशन उसके तीन कोर वैल्यूज़ पर टिकी है – ईमानदारी, एक्सीलेंस, और वैल्यू ऐड करना। इनकी स्ट्रक्चर्ड वर्क प्लानिंग, स्पेशलाइज़्ड रिसोर्सेज़ और इंटरनल कंट्रोल्स पर फोकस क्लाइंट्स को लीगल सिक्योरिटी के साथ एफिशिएंटली काम करने में मदद करता है।
एडवोकेट राधिका थापर बहल, जो एफ.एल.सी. की फाउंडर और चीफ मेंटर हैं, इंडिया और ग्लोबली रिप्रोडक्टिव लॉ में एक जानी-पहचानी एक्सपर्ट हैं। उन्होंने महिला और चाइल्ड वेलफेयर को लेकर जो काम किया है, और खासकर फर्टिलिटी प्रिजर्वेशन में जो लीगल रिफॉर्म्स की शुरुआत की है, वह अब ए.आर.टी. एक्ट का भी हिस्सा हैं।
राधिका का टर्निंग पॉइंट
बहुत से यंग लॉयर्स की तरह राधिका ने भी अपना करियर लिटिगेशन से शुरू किया, जहाँ वो प्रॉपर्टी डिस्प्यूट्स, कॉन्ट्रैक्ट्स और फैमिली लॉ जैसे केस देखती थीं। लेकिन साल 2007 में एक ऐसा केस आया जिसने उनकी सोच बदल दी। एक क्लाइंट ने उनसे कहा कि वो सरोगेसी करना चाहते हैं। उस वक्त इंडिया में इसके लिए कोई क्लियर लीगल गाइडलाइन नहीं थी।
उसी एक केस ने उन्हें रिप्रोडक्टिव लॉ की उस दुनिया से जोड़ दिया, जो अब तक नज़रअंदाज़ और गलत समझी जाती थी। राधिका ने उस केस में खुद को पूरी तरह झोंक दिया – उन्होंने पढ़ाई की, रिसर्च किया और एक लीगल फ्रेमवर्क बनाया। और यही एक केस धीरे-धीरे उनकी लाइफ का कॉलिंग बन गया।
आज राधिका के पास सरोगेसी, एडॉप्शन, ए.आर.टी., और महिलाओं और बच्चों के अधिकार (जे.जे. एक्ट) से जुड़ी गहरी जानकारी है। वो एक ट्रस्टेड नाम बन चुकी हैं – इंडिविजुअल्स, कपल्स, हॉस्पिटल्स, ए.आर.टी. बैंक्स और क्लिनिक्स के लिए।
वो सिर्फ एक नहीं बल्कि दो फर्म्स की फाउंडर हैं – फर्टिलिटी लॉ केयर और लेक्स मैट्रिक्स कंसल्टेंट्स। इन दोनों फर्म्स का मकसद है – क्लाइंट्स को रिप्रोडक्टिव लॉ से जुड़े मामलों में गाइड करना। और एक ऐसे देश में जहाँ ये फील्ड अभी डेवलप हो रहा है, राधिका को सही मायनों में पायनियर कहा जा सकता है। आज “फर्टिलिटी लॉयर” शब्द सुनते ही सबसे पहला नाम राधिका थापर बहल का ही आता है।
ग्लास सीलिंग को तोड़ते हुए
लीगल इंडस्ट्री हमेशा से मेल-डॉमिनेटेड रही है। आज थोड़ा माहौल बदला है, लेकिन जब राधिका ने इस फील्ड में करियर शुरू किया था, तब औरतों के लिए यहाँ टिकना बहुत मुश्किल था। परेशानियाँ सिर्फ प्रोफेशनल नहीं थीं, सोसाइटी और सिस्टम दोनों से थीं — जैसे लंबे और अनफिक्स्ड वर्किंग ऑवर्स, लीडरशिप रोल्स में औरतों की कमी, और हर बार खुद को प्रूव करने का प्रेशर।
लेकिन इन सबके बीच राधिका की फैमिली उनका सबसे बड़ा सपोर्ट बनी। उन्होंने न सिर्फ उनके अनप्रिडिक्टेबल काम के समय को समझा, बल्कि मदरहुड के फेज़ में भी उनके साथ मज़बूती से खड़े रहे। फैमिली की इसी अंडरस्टैंडिंग और मोटिवेशन की वजह से राधिका ने जस्टिस के लिए अपने पैशन को छोड़ा नहीं और धीरे-धीरे लीगल इंडस्ट्री में अपना नाम बना लिया।
पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ का बैलेंस बनाना भी उनके लिए आसान नहीं रहा। वो खुद मानती हैं कि इस फील्ड में वर्क-लाइफ बैलेंस मेंटेन करना वाकई में चैलेंजिंग होता है। यहाँ भी उनके लिए फैमिली का सपोर्ट बहुत मायने रखता है। लेकिन जो चीज़ उन्हें सबसे ज़्यादा हेल्प करती है, वो है उनका सेट वर्किंग स्टाइल। उन्होंने अपने लिए एक फिक्स्ड रूटीन बना लिया है, जिससे उनकी डिमांडिंग प्रोफेशनल लाइफ में भी थोड़ी स्टेबिलिटी बनी रहती है।
फर्टिलिटी लॉ केयर को क्या बनाता है सबसे अलग
फर्टिलिटी लॉ केयर (FLC) इंडिया की पहली ऐसी लीगल कंसल्टेंसी है जो पूरी तरह से रिप्रोडक्टिव लॉ पर फोकस करती है। यही चीज़ इसे पूरी लीगल इंडस्ट्री से अलग बनाती है। पिछले दस सालों में इस फर्म ने एक ऐसा नाम बनाया है जो लीगल प्रिसीजन और डीप सेंसिटिविटी दोनों का बैलेंस रखता है।
FLC की कोर वैल्यू है — ट्रांसपेरेंसी। ये टीम शुरू से ही अपने क्लाइंट्स के साथ क्लियर और ओपन बातचीत में यकीन रखती है, जिससे ट्रस्ट शुरू से बनता है। इसके साथ-साथ इनका प्रोफेशनल कोड ऑफ कंडक्ट इतना स्ट्रॉन्ग है कि क्लाइंट्स के साथ लॉन्ग-टर्म रिलेशनशिप बनती है।
FLC का वर्किंग स्टाइल भी इसे बाकी फर्म्स से अलग बनाता है। हर प्रोजेक्ट के लिए पहले एक डीटेल्ड वर्क प्लान बनाया जाता है, जिसे क्लाइंट के साथ शेयर किया जाता है और उस पर डिस्कशन होता है। इससे सब कुछ क्लियर रहता है, कोई सरप्राइज़ नहीं होता और एफर्ट्स सही जगह लगते हैं। हर लीगल इशू को प्रॉपर एनालिसिस से हैंडल किया जाता है और अगर ज़रूरत हो तो स्पेशल लीगल डॉक्युमेंटेशन भी तैयार की जाती है ताकि क्लाइंट्स की स्पेसिफिक ज़रूरतें कवर हो सकें।
यह फर्म सिर्फ लीगल काम तक सीमित नहीं रहती। इंटरनल प्रोसीजर और मैनेजमेंट कंट्रोल्स को कैसे इंप्रूव किया जा सकता है, इस पर भी सजेशन देती है — खासतौर पर मेडिकल इंस्टिट्यूशन्स के लिए। इनकी टीम सिर्फ प्रॉब्लम सॉल्व करने के लिए नहीं बनी है, बल्कि प्रैक्टिकल इंप्रूवमेंट सजेस्ट करने के लिए भी ट्रेन की गई है ताकि क्लाइंट्स एफिशिएंटली ऑपरेट कर सकें और लॉन्ग टर्म में रिस्क भी कम हो।
FLC की एक्सपर्टीज़ बहुत सारी लॉज़ को कवर करती है। ये हर कोर्ट लेवल पर क्लाइंट्स को सपोर्ट करती है और एग्रीमेंट्स, SOPs, और कम्प्लायंस फ्रेमवर्क्स तैयार करने में भी मदद करती है। क्लाइंट्स को सिर्फ लीगल नॉलेज नहीं, बल्कि लोकल और इंटरनैशनल बेस्ट प्रैक्टिसेज़ का फायदा भी मिलता है। इनका सिंपल गोल है – एफिशिएंट, हाई-क्वालिटी सर्विस देना जिससे क्लाइंट्स लीगली सिक्योर रहें और कॉन्फिडेंस के साथ आगे बढ़ें।
हर वक्त एक कदम आगे रहना
लीगल वर्ल्ड लगातार बदल रहा है – नए लॉज़ आते हैं, रेग्युलेशंस में बदलाव होते हैं। ऐसे में अपडेट रहना बहुत ज़रूरी है। राधिका और उनकी टीम के लिए ये डेली रूटीन का हिस्सा बन चुका है। जैसा कि वो खुद कहती हैं – “जब आप इस फील्ड में होते हो और रेगुलरली प्रैक्टिस करते हो, तो आपके पास हर नए अपडेट पर अप-टू-डेट रहने के अलावा कोई ऑप्शन नहीं बचता।”
इसमें टेक्नोलॉजी बहुत काम आती है। टेक्नोलॉजी की मदद से टीम को हर नए अमेंडमेंट, केस लॉ, और रेग्युलेटरी चेंज की जानकारी मिलती रहती है। इसके अलावा राधिका खुद की रिसर्च टीम पर भरोसा करती हैं, साथ ही उनकी खुद की कंटिन्युअस लर्निंग और ऑन-ग्राउंड एक्सपीरियंस भी इस सफर में बहुत काम आता है।
एक बनती हुई लेगेसी
लीगल फील्ड में दो दशकों से ज़्यादा के एक्सपीरियंस के साथ, राधिका खासतौर पर मेडिको-लीगल इशूज़ में एक्सपर्ट हैं, खासकर असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्निक्स (ART) से जुड़ी मामलों में। अपने करियर में उन्होंने कई अहम माइलस्टोन्स अचीव किए हैं, जैसे:
- फर्टिलिटी लॉ केयर (FLC) में चीफ़ मेंटर के तौर पर काम कर रही हैं — यह इंडिया की पहली ऐसी लीगल फर्म है जो पूरी तरह से रिप्रोडक्टिव लॉज़ पर फोकस करती है।
- औरतों और बच्चों की वेलफेयर के लिए लगातार आवाज़ उठाई है, और पिछले दो दशकों से औरतों के राइट्स के लिए लड़ती आ रही हैं।
- ART एक्ट के ड्राफ्टिंग फेज़ के दौरान अपने सुझावों के ज़रिए “फर्टिलिटी प्रिज़र्वेशन” को इस कानून में शामिल करवाने में अहम भूमिका निभाई।
- सोशल सेक्टर में बेस्ट वर्क के लिए स्वामी विवेकानंद मैजेस्टी अवॉर्ड से सम्मानित हुईं, जो उन्हें आदर्श शास्त्री (MLA) द्वारा दिया गया।
- अपनी बेटियों के साथ मिलकर “बेटी प्लस” नाम का एक ट्रस्ट शुरू किया, जो औरतों के राइट्स को प्रोटेक्ट और न्यूचर करने पर फोकस करता है।
- साल 2019–2020 के लिए ISAR (इंडियन सोसाइटी फॉर असिस्टेड रिप्रोडक्शन) की लीगल एडवाइज़र रहीं।
- ISAR के सालाना कॉन्फ्रेंस के दौरान उनकी कॉन्ट्रीब्यूशन के लिए उन्हें ISAR का चैंपियंस ट्रॉफी और प्रेसिडेंट्स अवॉर्ड भी मिला।
- AIIMS जोधपुर में कई असरदार लीगल अवेयरनेस सेशंस कंडक्ट किए, खासतौर पर फर्टिलिटी प्रिज़र्वेशन पर।
- CNN, टाइम्स नाउ, आज तक, और ज़ी टीवी जैसे बड़े मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर उनके काम और एक्सपर्ट ओपिनियन को फीचर किया गया है।
- उन्होंने कई इंटरनैशनल कपल्स की मदद की है, जो ART प्रक्रिया से जन्मे बच्चों के इमिग्रेशन से जुड़े लीगल मामलों को हैंडल करने में सपोर्ट चाहते थे।
एक ऐसा फ्यूचर बनाना जहाँ चॉइस हो
राधिका का मिशन है — इंडिया में औरतों और कपल्स के रिप्रोडक्टिव राइट्स के लिए एडवोकेसी करना, ताकि वो इन्फॉर्म्ड डिसीज़न ले सकें और लीगली अपना परिवार बना सकें। उनकी विज़न है — एक ऐसा समाज तैयार करना जो औरतों और बच्चों के अधिकारों को प्रोटेक्ट करे और उन्हें फ्रीडम दे ताकि वो बिना किसी रोक-टोक के अपने रिप्रोडक्टिव चॉइसेज़ को एक्सरसाइज़ कर सकें।
अपने काम के ज़रिए राधिका लगातार चेंज ला रही हैं — एक ऐसा फ्यूचर तैयार कर रही हैं जहाँ रिप्रोडक्टिव राइट्स को रिस्पेक्ट किया जाए और सभी के लिए ये एक्सेसिबल हो।