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नवरात्रि और महाअष्टमी : शक्ति और शांति का संगम ध्यानगुरु रघुनाथ गुरुजी और दिव्य शांति परिवार का विशेष संदेश

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पुणे, सितम्बर 2025: सुबह का वातावरण, मंदिर प्रांगण में धूप-दीप की सुगंध, मंत्रोच्चार की गूंज और भक्तों की एकाग्र प्रार्थना—यह दृश्य था दिव्य शांति परिवार द्वारा आयोजित नवरात्रि साधना का। हाथों में फूल, सामने जौ अंकुरण और कलश, और वातावरण में ॐ-जप की ध्वनि—मानो पूरा परिसर शक्ति और शांति से भर गया हो।

नवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व

ध्यानगुरु रघुनाथ गुरुजी ने उपस्थित भक्तों को संबोधित करते हुए कहा, “नवरात्रि केवल उत्सव नहीं, यह आत्मशुद्धि और आत्मबल का पर्व है। हर दिन देवी के अलग स्वरूप की पूजा हमें अलग शक्ति और गुण प्रदान करती है। राम ने भी रावण युद्ध से पूर्व इसी साधना से शक्ति प्राप्त की थी।”

महाअष्टमी : साधना का उत्कर्ष

नवरात्रि का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव है महाअष्टमी। सुबह से ही मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी। कहीं कन्या-पूजन हो रहा था तो कहीं हवन की तैयारी।

गुरुजी ने समझाया, “अष्टमी पर शक्ति का उत्कर्ष होता है। कालरात्रि और महागौरी की पूजा अज्ञान और भय को मिटाती है और पवित्रता तथा शांति का उदय करती है। सामूहिक ॐ-हवन से वातावरण सकारात्मकता से भर जाता है।”

चन्द्र और अष्टमी का संतुलन

पूर्णिमा से अष्टमी तक चन्द्र का आकार धीरे-धीरे घटता है। प्रकाश और ऊर्जा का प्रवाह भी बदलता है, जिसके कारण नींद, मनोदशा और मानसिक स्थिति में हल्का उतार-चढ़ाव महसूस हो सकता है।

अष्टमी के दिन लगभग 50% प्रकाश और 50% अंधकार होता है। यह स्थिति मन और शरीर दोनों पर संतुलनकारी प्रभाव डालती है।

इसके बाद अमावस्या की ओर बढ़ते हुए अंधकार और अधिक होता है, जिससे मन और नींद पर गंभीरता व शांति का असर बढ़ सकता है।

अष्टमी का वैज्ञानिक महत्त्व – 7 सकारात्मक बिंदु

(ध्यानगुरु रघुनाथ गुरुजी – दिव्य शांति परिवार)

चन्द्र का संतुलन (50% प्रकाश): अष्टमी पर चन्द्रमा आधा प्रकाशित होता है, जो प्रकाश और अंधकार का संतुलन दर्शाता है। यह ध्यान और साधना के लिए मन को स्थिर करता है।

पूर्णिमा–अष्टमी–अमावस्या चक्र: चन्द्रमा के बढ़ते–घटते आकार से नींद और मनोदशा पर असर पड़ सकता है। अष्टमी को संतुलित चरण मानना एक शोध योग्य परिकल्पना है।

मानसिक शांति: वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि चन्द्र-चक्र मनोदशा को हल्के रूप से प्रभावित करता है। अष्टमी का संतुलित चरण न अधिक उत्तेजना देता है, न अधिक सुस्ती।

ॐ जप का लाभ: ॐ का उच्चारण तनाव घटाने और तंत्रिका संतुलन से जुड़ा पाया गया है। अष्टमी की ऊर्जा में इसका प्रभाव और गहरा महसूस होता है।

हवन का वातावरणीय लाभ: औषधीय सामग्री से किया गया हवन वातावरण को शुद्ध करता है और सूक्ष्मजीवों की संख्या घटाता है।

ऊर्जा का संगम: अष्टमी पर चन्द्र की शीतलता और हवन की ऊष्मा — दोनों का संगम मन, शरीर और चेतना में ऊर्जा संतुलन पैदा करता है।

साधना का श्रेष्ठ अवसर: अष्टमी पर ध्यान और जप अधिक ग्रहणशील माना जाता है — क्योंकि खगोलीय स्थिति और वातावरण साधक को गहरी अनुभूति देते हैं।

शक्ति और शांति का समन्वय

अग्नि की ऊष्मा और चन्द्रमा की शीतलता का यह प्रतीकात्मक संगम महाअष्टमी का मूल संदेश है। गुरुजी ने कहा, “केवल शक्ति पर्याप्त नहीं। शक्ति का उद्देश्य करुणा और शांति लाना है। यही महाअष्टमी की साधना है।”

सामाजिक संदेश

सामूहिक आरती के दौरान महिलाएँ, पुरुष और बच्चे सबने मिलकर माँ दुर्गा की प्रार्थना की। गुरुजी ने कहा, “माँ शक्ति केवल किसी एक परिवार की नहीं, बल्कि पूरी सृष्टि की माता हैं। उनकी पूजा का उद्देश्य सम्पूर्ण मानवता का कल्याण है।”

निष्कर्ष

नवरात्रि और महाअष्टमी का यह पर्व हमें याद दिलाता है कि जीवन में शक्ति और शांति दोनों का संतुलन आवश्यक है।

दिव्य शांति परिवार ने संकल्प लिया कि सामूहिक साधना और सकारात्मक ऊर्जा से न केवल व्यक्ति, बल्कि परिवार, समाज और सम्पूर्ण विश्व का कल्याण हो।

माँ बगलामुखी – सात्त्विक कथा और महत्त्व, प्राचीन इतिहास और प्राकट्य

सौराष्ट्र में प्राकट्य: प्राचीन परम्पराओं के अनुसार माँ बगलामुखी का प्राकट्य सौराष्ट्र क्षेत्र में माना जाता है। गिरनार पर्वत और आसपास की साधना-भूमि पर देव–ऋषियों ने सात्त्विक भाव से उनकी पूजा की।

सतयुग की कथा: सतयुग में जब भयंकर तूफान और प्रलयकारी संकट आया, तब भगवान विष्णु ने हरिद्रा सरोवर के पास कठोर तपस्या की। माँ बगलामुखी प्रकट होकर उन्होंने उस विनाशकारी तूफान को रोक दिया और सृष्टि की रक्षा की।

दंतवक्र असुर का वचन-नियंत्रण: असुर दंतवक्र असत्य बोलकर धर्म और देवताओं को कष्ट पहुँचाता था। माँ ने उसकी जीभ पकड़कर असत्य को मौन कर दिया और सत्य की स्थापना की। यह घटना प्रतीक है कि सत्य की रक्षा माँ स्वयं करती हैं।

सात्त्विक स्वरूप और महत्व

करुणा और शांति की शक्ति: माँ बगलामुखी को पीताम्बरा देवी भी कहा जाता है। पीला वस्त्र शांति, करुणा और सात्त्विकता का प्रतीक है।

विश्वशांति और लोककल्याण: गिरनार और सौराष्ट्र में उनकी पूजा विश्वशांति, लोककल्याण और मानस शांति के लिए की जाती रही है।

संकट निवारण: तूफान और आपदाओं जैसे प्राकृतिक संकटों से रक्षा करने वाली शक्ति के रूप में माँ की आराधना होती है।

सुख, शांति और समृद्धि: उनकी उपासना से साधक के जीवन में संतुलन, मानसिक स्थिरता और पारिवारिक सुख आता है।

रोगों और दुखों का निवारण: जो रोग, अशांति या आंतरिक क्लेश “मनुष्य के भीतर का शत्रु” बनते हैं, माँ बगलामुखी उनकी जड़ काटकर स्वास्थ्य और संतोष प्रदान करती हैं।

सत्य की स्थापना: वे वाणी और विचार को सत्य की ओर ले जाती हैं, जिससे समाज में धर्म, न्याय और प्रेम का संचार होता है।

स्थान-परम्परा: बाद में माँ पीताम्बरा शक्ति के रूप में नलखेड़ा (मध्यप्रदेश), दतिया और कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) में पूजित हुईं, जहाँ आज भी उनकी शक्तिपीठ प्रसिद्ध हैं।

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