भारतीय हस्तशिल्प को फिर से दुनिया से जोड़ती एक पहल
जब हम अपने बचपन की ओर लौटकर देखते हैं, तो हमें याद आता है कि हमारे घरों की दीवारों पर देवी-देवताओं की पेंटिंग्स होती थीं, नक्काशीदार लकड़ी के फर्नीचर होते थे, और पीतल के दीये और लैंप हर कोने में रौशनी बिखेरते थे। ये चीज़ें सिर्फ सजावट नहीं थीं—ये हमारी विरासत का हिस्सा थीं। लेकिन समय के साथ ये सब पीछे छूट गया। आधुनिक ‘मिनिमलिज़्म’ ने जगह ले ली, फैमिली हेयरलूम की जगह फास्ट फर्नीचर ने ले ली, और हाथ से बनी तस्वीरों की जगह प्रिंटेड फ्रेम्स ने।
आज जब सदियों पुरानी हमारी कला और परंपराएं गुम होने के खतरे से जूझ रही हैं, कुछ मंच ऐसे हैं जो इन्हें फिर से पहचान और सम्मान दिलाने की कोशिश कर रहे हैं। ‘तरंग आर्ट्स’ ऐसा ही एक प्लेटफॉर्म है—जहां सिर्फ कला को नहीं, कलाकारों को भी सम्मान और समर्थन मिलता है।
इस ब्रांड के पीछे हैं संजना अश्विन—एक ऐसी महिला जो मानती हैं कि परंपराएं सिर्फ किताबों में नहीं, जीवन में भी जिंदा रहनी चाहिए। उनके लिए तरंग आर्ट्स एक स्टेज है जहां कलाकारों को अपनी कला दिखाने का मौका मिलता है और उनके बनाए काम को आज के मॉडर्न घरों में जगह मिलती है।
तरंग आर्ट्स: भारतीय कला को संरक्षित करने और कलाकारों को सशक्त बनाने की पहल
तरंग आर्ट्स की शुरुआत एक पैशन से हुई—भारतीय पारंपरिक कला और संस्कृति को बचाने और कलाकारों के लिए एक ऐसा इकोसिस्टम बनाने का सपना, जहां वे सम्मान और आत्मनिर्भरता के साथ जी सकें। 2004 में एक छोटे से स्टोर के रूप में शुरू हुआ ये सफर आज एक भरोसेमंद हैंडीक्राफ्ट रिटेल ब्रांड बन चुका है।
‘तरंग’ नाम से आज कई स्टोर्स चल रहे हैं, जो क्लासिकल आर्ट्स के चाहने वालों के लिए एक पसंदीदा जगह बन गए हैं। खासकर तंजावुर (थंजावूर) की गहनों से सजी पेंटिंग्स और पीतल, कांसे, लकड़ी, पत्थर और धातु से बनी शानदार कलाकृतियां यहां की खासियत हैं।
समय के साथ, तरंग ने ‘जंगड़ी’ ब्रांड के ज़रिए ट्रेडिशनल सिल्वर ज्वेलरी को भी नए अंदाज़ में पेश किया। इसके साथ-साथ, उनका ऑनलाइन प्लेटफॉर्म भी विश्वभर के कला-प्रेमियों को क्यूरेटेड और यूनिक आर्टवर्क्स की सुविधा देता है—बिना अपने घर से बाहर निकले।
तरंग आर्ट्स का सपना है एक ऐसी दुनिया बनाना जहां भारतीय हस्तशिल्प को वो पहचान मिले जिसके वो हकदार हैं, और जहां हमारे कारीगर सम्मान और गर्व के साथ जीवन जी सकें।
यह कंपनी सिर्फ कला नहीं बेचती—ये एक पुल बनाती है, शहरों और गांवों के बीच, कलाकारों और ग्राहकों के बीच। ‘तरंग आर्ट्स प्रमोशन काउंसिल’ के ज़रिए यह कारीगरों को ना सिर्फ प्लेटफॉर्म देती है, बल्कि उन्हें नए बाज़ारों से भी जोड़ती है। टीम उनके साथ मिलकर प्रोडक्ट्स को इनोवेट करती है ताकि वो वैश्विक स्तर पर भी अपनी कला को सफलतापूर्वक प्रस्तुत कर सकें—बिना अपनी जड़ों को छोड़े।
उद्यमिता की छलांग
कहते हैं, “Jack of all trades, master of none – but oftentimes better than master of one.” और ये लाइन संजना अश्विन पर पूरी तरह फिट बैठती है। एक समय पर वो एक शानदार स्टूडेंट और नेशनल-लेवल गोल्फ खिलाड़ी थीं।
2019 में उन्होंने परिवार के साथ काम करना शुरू किया, जहां वे ज्वेलरी और हैंडीक्राफ्ट के क्षेत्र में कदम रख रहे थे। आज वे तरंग आर्ट्स के हस्तशिल्प डिविजन की अगुवाई कर रही हैं और साथ ही अपनी खुद की एक स्टार्टअप भी चला रही हैं।
संजना बताती हैं कि शुरूआत में उन्होंने हर चीज़ खुद सीखते हुए की—चाहे वो कारीगरों से बातचीत हो, ग्राहकों से फीडबैक लेना हो, या सप्लायर्स को मैनेज करना हो। “शुरू में समझ नहीं आया था कि यहीं मेरी जगह है। लेकिन जैसे-जैसे मैं इसमें डूबी, साफ़ होता गया कि मुझे यहीं रहना है,” वो कहती हैं।
एक बड़ा बदलाव COVID-19 के समय आया, जब डिजिटल की ज़रूरत हर इंडस्ट्री में अचानक बहुत बढ़ गई। उसी समय उन्होंने अपना खुद का ड्रॉप-शिपिंग स्टार्टअप शुरू किया, जिसका मकसद था छोटे और मंझोले व्यवसायों को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म देना।
“बहुत से लोग डिजिटल का महत्व समझते ही नहीं थे। तो मैंने सोचा, क्यों न उन्हें ये समझाने में मदद करूं कि ये ना सिर्फ ज़रूरी है, बल्कि उनके लिए फायदेमंद भी हो सकता है।” आज इस वेंचर के ज़रिए वो कई छोटे कारोबारियों को डिजिटल दुनिया में पहचान दिलाने में मदद कर रही हैं।
हस्तशिल्प की एक खास और खूबसूरत दुनिया
तरंग आर्ट्स की शुरुआत एक बेहद सिंपल लेकिन मजबूत सोच से हुई थी—भारतीय हस्तशिल्प को ज़िंदा रखना और पारंपरिक कारीगरों को एक सम्मानजनक मंच देना। संजना कहती हैं, “जो हमें सबसे अलग बनाता है, वो है हमारा प्रोडक्ट सोर्सिंग का तरीका। हमारे यहां कोई मिडलमैन नहीं होता। हमारी टीम, मैनेजमेंट सहित, पूरे भारत में घूमकर कलाकारों से खुद मिलती है और उनके साथ सीधे काम करती है। तरंग में जो भी चीज़ आपको दिखती है, वो पूरी तरह से हाथ से बनी होती है और भारत में ही बनाई गई होती है।”
तरंग आर्ट्स का कलेक्शन बेहद समृद्ध है—चाहे वो तंजावुर की पारंपरिक पेंटिंग्स हों, बारीक नक्काशीदार लकड़ी की मूर्तियां, पीतल के देवी-देवताओं की प्रतिमाएं, होम डेकोर या हैंडक्राफ्टेड फर्नीचर। उनके पास 50 से ज्यादा कारीगरों का इन-हाउस वर्कशॉप है, जहां ज़्यादातर प्रोडक्ट्स एक ही छत के नीचे डिज़ाइन और तैयार किए जाते हैं।
हालांकि क्वालिटी उनकी पहचान है, लेकिन जो बात उन्हें वाकई सबसे अलग बनाती है, वो है उनकी कस्टमाइज़ेशन की क्षमता।
कई बार ग्राहक अपने सपनों या मंदिर यात्रा से प्रेरित होकर किसी खास देवता की मूर्ति एक खास मुद्रा या रंग में बनवाना चाहते हैं। संजना और उनकी टीम ये सुनिश्चित करती हैं कि हर सपना साकार हो। चाहे वो मूर्ति के चेहरे का हाव-भाव हो या हाथ की एक विशेष मुद्रा, हर डिटेल क्लाइंट की मांग के अनुसार तैयार की जाती है।
तरंग आर्ट्स की सबसे बड़ी ताकत है उनका हैंड्स-ऑन अप्रोच—क्वालिटी कंट्रोल से लेकर कस्टमर सेटिस्फैक्शन तक। हर प्रोडक्ट को खुद टीम चुनती है। संजना बताती हैं, “हम फिनिशिंग या डिटेलिंग से कभी समझौता नहीं करते। और क्योंकि हम कलाकारों से सीधे जुड़े हैं, हम उन्हें कस्टम प्रोजेक्ट्स में गाइड कर सकते हैं ताकि जो अंतिम परिणाम निकले, वो बिल्कुल वैसा हो जैसा कस्टमर ने सोचा था।”
प्रोडक्ट के अलावा, तरंग आर्ट्स को इस बात पर गर्व है कि वो कलाकारों से सीधे जुड़ते हैं। टीम पूरे भारत में यात्रा कर ऐसे प्रतिभाशाली कलाकारों को खोजती है जिनके पास कोई मंच या बाजार तक पहुंच नहीं होती। सीधे पार्टनरशिप कर के, तरंग न सिर्फ उनकी आजीविका को सपोर्ट करता है, बल्कि उनकी कला को पहचान और सम्मान भी दिलाता है।
आधुनिकता और परंपरा के बीच संतुलन
समय के साथ, तरंग आर्ट्स ने ग्राहकों की पसंद में बड़ा बदलाव देखा है। जब संजना ने काम संभाला, तो उन्होंने ये बदलाव साफ महसूस किया। “पहले लोग ज्यादा मॉडर्न और चमकदार डिज़ाइनों की ओर झुकते थे। लेकिन अब लोग फिर से पारंपरिक डिज़ाइन और फिनिश की ओर लौट रहे हैं,” वो कहती हैं।
उदाहरण के लिए, तंजावुर पेंटिंग्स को लें। कभी ये पेंटिंग्स अपनी पुरानी, एंटीक फिनिश के लिए जानी जाती थीं। फिर एक समय आया जब इसमें ब्राइट कलर्स और शाइनी गोल्ड फॉइल का चलन शुरू हुआ। लेकिन अब लोग फिर से उसी पुराने, रस्टिक और क्लासिक अंदाज़ की मांग कर रहे हैं।
तरंग आर्ट्स ने इस बदलाव को समझा और अब वे अपने सभी प्रोडक्ट्स के पारंपरिक और आधुनिक—दोनों वर्जन पेश करते हैं, ताकि हर ग्राहक को उनकी पसंद की चीज़ मिल सके।
तरंग के ग्राहक ज्यादातर 35 साल से ऊपर की उम्र के होते हैं—जैसे घर के मालिक, आर्ट कलेक्टर्स, मंदिर कमिटी के लोग और विदेशों में रहने वाले भारतीय जो अपने घर में भारत की विरासत का एक टुकड़ा लाना चाहते हैं।
हालांकि युवा पीढ़ी अभी भी भारतीय हस्तशिल्प की ओर धीरे-धीरे आकर्षित हो रही है, संजना मानती हैं कि समय के साथ उनकी दिलचस्पी और बढ़ेगी। फिलहाल, तरंग उन लोगों की ज़रूरतें पूरा कर रहा है जो पहले से ही इन कलाकृतियों की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक अहमियत को समझते हैं।
रूढ़ियों को तोड़ती एक युवा लीडर
दूसरी पीढ़ी की उद्यमी होने के नाते, अपने पिता की जगह संभालना संजना के लिए आसान नहीं था। एक युवा CEO के रूप में उन्हें कई अलग-अलग चुनौतियों का सामना करना पड़ा। सबसे पहली चुनौती थी—जनरेशन गैप को समझना और उससे निपटना। “मैं जिस तरह से सोचती हूं, और मेरे पापा या सीनियर स्टाफ जैसे लोग जिस तरह सोचते हैं, वो काफी अलग है,” वो एकदम साफ़ कहती हैं।
विचारों को एक दिशा में लाना, नए आइडिया लागू करना और पूरी टीम को एक सोच पर लाना—ये सब एक दिन में नहीं हुआ। टीम के ज़्यादातर लोग सालों से कंपनी से जुड़े हुए थे। ऐसे में जब संजना ने मॉडर्न प्रैक्टिसेज़ लानी शुरू कीं, तो शुरुआती तौर पर उन्हें तुरंत स्वीकार नहीं किया गया।
लेकिन उन्होंने धीरे-धीरे भरोसा जीता। इसकी सबसे बड़ी वजह थी—उनका असलीपन। “मैं ऑफिस में और घर पर अलग-अलग शख्सियत नहीं बनाती। हर दिन मेरे लिए एक लर्निंग सेशन जैसा है,” वो कहती हैं। इसी ईमानदारी और सच्चाई ने उन्हें मुश्किल वक्त में भी ज़मीन से जोड़े रखा।
एक और बड़ी चुनौती थी—एक युवा महिला के रूप में एक जमी-जमाई कंपनी को लीड करना। शुरुआत में कई लोग उन्हें गंभीरता से नहीं लेते थे। “लोगों को यकीन करने में थोड़ा वक्त लगता है कि आप टिके रहेंगे,” उन्होंने स्वीकार किया। लेकिन धीरे-धीरे, उनकी मेहनत, पारदर्शिता और लगातार ग्रोथ पर ध्यान देने की वजह से उन्होंने सबका विश्वास जीत लिया।
मार्केट की नब्ज़ समझना और कारीगरों से इस तरह संवाद करना कि वो सम्मानित महसूस करें—ये सब अनुभव से ही आता है, और संजना ने इसे पूरे समर्पण से सीखा। एक और चीज़ जो उनके काम करने के तरीक़े की रीढ़ है, वो है—structure। चाहे वो फाइनेंस की बात हो, ऑपरेशन्स की या स्ट्रैटेजी की—वो हमेशा एक सादा लेकिन प्रभावशाली टूल का सहारा लेती हैं: “मैं कोई भी फैसला लेने से पहले खुद के सामने एक SWOT analysis रखती हूं,” वो बताती हैं।
साथ चलने वाली लीडरशिप
एक युवा लीडर के रूप में संजना की सोच एनर्जेटिक और फ्यूचर-ओरिएंटेड है। उन्हें मूवमेंट पसंद है और वो समय की कद्र करती हैं। “मैं एक मिनट भी वेस्ट नहीं करना चाहती,” वो कहती हैं, और यही फोकस अब तरंग आर्ट्स की वर्क कल्चर का हिस्सा बन चुका है।
सफलता हो या असफलता, संजना हमेशा अपनी टीम के साथ खड़ी रहती हैं। “किसी चीज़ में फेल होने का मतलब ये नहीं कि आप रुक जाएं या खुद पर शक करने लगें,” वो कहती हैं। “मेरे लिए हर दिन एक नई लर्निंग का मौका है।”
वो अपने फैसलों में अनुभव की अहमियत समझती हैं, और अक्सर अपने बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स और सीनियर एडवाइज़र्स से सलाह लेती हैं।
हर मोड़ पर, संजना अपने पिता को अपनी सबसे बड़ी प्रेरणा मानती हैं। उनके विचार, दृष्टिकोण और लगातार मिलती फीडबैक ने उनकी लीडरशिप को एक स्पष्ट दिशा दी है। भले ही संजना नए जमाने की सोच और एनर्जी लेकर आई हैं, लेकिन उन्होंने अपने पिता के मूल्यों को कभी नहीं छोड़ा। यही संतुलन उन्हें एक ग्राउंडेड और डाइनैमिक लीडर बनाता है।
सबसे खास बात—वो टॉप-डाउन लीडर नहीं हैं। वो हमेशा अपनी टीम के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करती हैं।
तरंग आर्ट्स का भविष्य
आने वाले समय के लिए संजना की सोच बिल्कुल साफ़ है। उनका लक्ष्य है—तरंग आर्ट्स को पूरे भारत में ले जाना और इसे एक ग्लोबली रिकग्नाइज़्ड ब्रांड बनाना जो भारत की कला और विरासत का प्रतिनिधित्व करे।
संजना के लिए सफलता का मतलब सिर्फ टाइटल या मील के पत्थर नहीं है, बल्कि ये है कि वो अपने पिता के पैशन से शुरू हुए इस ब्रांड को कितनी ऊंचाई तक ले जा सकती हैं। “अल्टीमेट गोल यही है कि तरंग आर्ट्स को उस मुकाम तक ले जाया जाए, और शायद एक दिन इसे Fortune 500 की लिस्ट में भी देखा जाए,” वो पूरे विश्वास से कहती हैं।
लीडरशिप मंत्र
“अगर मैंने एक चीज़ सीखी है, तो वो ये कि डर को अपने रास्ते में मत आने दो,” संजना कहती हैं। “मैंने बहुत से युवाओं को देखा है जो या तो खुद पर बहुत ज़्यादा शक करते हैं, या फिर बहुत कूल होकर बैठे रहते हैं। लेकिन अगर आप उसी सोच में अटके रहोगे, तो आगे नहीं बढ़ पाओगे। आपका दिमाग जिस रास्ते पर ले जाए, उस पर चलो—चाहे वो कितना भी अनसर्टेन क्यों न लगे। आप 10 बार, यहां तक कि 100 बार फेल हो सकते हैं, लेकिन ट्राय करते रहो। क्योंकि वहीं से आपको वो रास्ता मिलेगा जो सच में काम करता है।”