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गिरनार यात्रा -ध्यान साधना विज्ञान और सेवा का संगम – ध्यानगुरु रघुनाथ येमुल गुरुजी

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जूनागढ़

आध्यात्मिक ध्यान साधना, भक्ति और आत्मानुभूति का केंद्र माने जाने वाले गिरनार पर्वत ने इस वर्ष एक ऐतिहासिक क्षण देखा। पुणे के ध्यानगुरु रघुनाथ येमुल गुरुजी ने अपनी 1000वीं गिरनार यात्रा और गिर परिसर पूर्ण की — यह उपलब्धि न केवल उनकी व्यक्तिगत ध्यान साधना का प्रतीक है, बल्कि सामूहिक चेतना और वैज्ञानिक अध्यात्म के संगम का उदाहरण भी बन गई है।उन्होंने १०८ बार गिरनार पर्वत का यात्रा किया 

गिरनार यात्रा — ध्यान और विज्ञान का अद्भुत संगम

22 वर्ष की आयु से गुरुजी गिरनार परिसर की कठिन यात्रा करते आ रहे हैं। वे बताते हैं —

“गिरनार यात्रा केवल एक धार्मिक कर्मकांड नहीं है, बल्कि यह शरीर, मन और चेतना के शुद्धिकरण का मार्ग है। इस यात्रा के माध्यम से साधक ‘भगवान दत्त तत्व’ गुरु गोरक्षनाथ महाराज — आध्यात्मिक ऊर्जा से एकाकार होता है।”

पीर योगी महंत सोमनाथ बापू के आशीर्वाद से गुरुजी गुरु गोरक्षनाथ सेवा समिति के कार्य अध्यक्ष है और दिव्य शांति परिवार*” के संस्थापक हैं और उन्होंने हजारों लोगों को ध्यान, और सेवा के माध्यम से जीवन में संतुलन व शांति का मार्ग दिखाया है। वे *अध्यक्ष और संस्थापक दिव्यांग इंडियन चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के है 

गिरनार यात्रा का महत्व ध्यान और वैज्ञानिक दृष्टिकोण

गिरनार पर्वतीय यात्रा १०००० स्टेप है, जिसमें *यह यात्रा भक्त भगवान दत्तात्रेय, गुरु गोरक्षनाथ महाराज माता अंबा और भगवान नेमिनाथ के दर्शन करते हुए इस तपोभूमि का यात्रा करते हैं।

गुरुजी कहते हैं —

“जब लाखों श्रद्धालु एक लय में ‘जय गिरनारी जय गुरु देव दत्त’ का उच्चारण करते हुए चलते हैं, तो सामूहिक मन (Collective Mind) में ऊर्जा का संतुलन उत्पन्न होता है। आधुनिक विज्ञान इसे Mass Coherence कहता है। इस दौरान उत्पन्न Alpha Waves मस्तिष्क को शांति देती हैं, तनाव को कम करती हैं और चेतना को संतुलित करती हैं।”


गिरनार — ध्यान प्रकृति और चेतना का संगम

गिरनार पर्वत, जिसे प्राचीन ग्रंथों में रैवतक पर्वत कहा गया है, भारत के सबसे प्राचीन और ऊर्जावान तीर्थ स्थलों में से एक है। यहाँ भगवान दत्तात्रेय के पदचिह्न, गुरु गोरखनाथ की साधना स्थल और गुफा, माता अंबा का मंदिर और भगवान नेमिनाथ की मोक्षस्थली स्थित है।

यह वही पर्वत है, जहाँ स्वामी विवेकानंद से लेकर श्रीमद राजचंद्रजी (महात्मा गांधी के आध्यात्मिक गुरु) तक अनेक महान तपस्वियों ने साधना और ध्यान किया। गुरुजी कहते हैं —

“इन सभी तपस्वियों की साधना में गिरनार पर्वत की ऊर्जा का गहरा योगदान रहा है। गिरनार वह स्थान है जहाँ हर श्वास एक प्रार्थना और हर कदम ध्यान बन जाता है।”

वैज्ञानिक दृष्टि से, गिरनार क्षेत्र की वायु में Negative आयंस (NAI) की मात्रा अधिक है। ये आयन हृदय और मस्तिष्क के लिए लाभदायक हैं, तनाव कम करते हैं और शरीर की ऊर्जा प्रणाली को संतुलित करते हैं। गिरनार की चट्टानें मुख्य रूप से igneous plutonic complex हैं, जिनमें चुंबकीय अनियमितताएँ पाई गई हैं — जिससे यह क्षेत्र विशिष्ट भू-ऊर्जात्मक महत्व रखता है।

गिरनार परिक्रमा मार्ग और ऐतिहासिक महत्व

कार्तिक एकादशी से त्रिपुरारी पौर्णिमl तक गिरनार परिक्रमा का प्रारंभ *भवनाथ मंदिर (दूधेश्वर महादेव)* से होता है।

  • पहला पड़ाव (12 किमी): जिना बाबा का मढ़ी और चंद्र मौलेश्वर मंदिर।
  • दूसरा पड़ाव (8 किमी): मालवेला झील और हनुमान मंदिर और सूरज कुंड।
  • तीसरा पड़ाव (8 किमी): मालवेला झील से बोरदेवी माता मंदिर तक का कठिन मार्ग, जिसे मालवेलानी घोड़ी कहा जाता है।
  • चौथा पड़ाव (8 किमी): बोरदेवी से भवनाथ मंदिर की वापसी।

यह परिक्रमा भगवान दत्तात्रेय गुरु गोरक्षनाथ महाराज और भगवान नेमिनाथ दोनों की साधना स्थली के रूप में जानी जाती है और हिन्दू-जैन एकता का प्रतीक मानी जाती है।

ध्यान और साधना के लिए गिरनार का आदर्श वातावरण

यदि कोई साधक गिरनार पर ध्यान सत्र आयोजित करना चाहे, तो गुरुजी निम्न सुझाव देते हैं:

1. सुबह का समय चुनें — वातावरण शांत और प्राणवान होता है।

2. वन-छाया में ध्यान करें — वृक्षों से भरे क्षेत्र में Negative Ions की मात्रा अधिक होती है।

3. पूर्ण मौन और स्थिरता रखें — ताकि स्थल की ऊर्जा का अनुभव गहरा हो सके।

4. पर्यावरणीय अवलोकन करें — यदि संभव हो तो ion meter या magnetometer से वातावरण की ऊर्जा का मापन करें।

गुरुजी का संदेश — सेवा ही सच्चा ध्यान

ध्यानगुरु रघुनाथ येमुल गुरुजी अपनी यात्राओं के दौरान ध्यान के साथ-साथ स्वच्छता, जल संरक्षण और वृक्षारोपण जैसी सामाजिक गतिविधियों को भी बढ़ावा देते हैं।

“शरीर और पृथ्वी — दोनों की रक्षा करना ही सच्ची साधना है,” वे कहते हैं।

गुरुजी की यह 1000वीं गिरनार यात्रा केवल एक व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं, बल्कि भारतीय आध्यात्मिक परंपरा का गौरव है। यह यात्रा बताती है कि जब मनुष्य भक्ति, विज्ञान और प्रकृति को एक सूत्र में जोड़ता है, तभी सच्ची “आंतरिक शांति” संभव होती है।

“गिरनार वह भूमि है जहाँ साधक स्वयं को, संसार को और परमात्मा को एक साथ अनुभव करता है।” -— ध्यानगुरु रघुनाथ येमुल गुरुजी

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